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फजीहत शायरी संग्रह
प्यार का भरोसा देकर फजीहत किया है वफा करता रहा समझ नहीं आया मेरा क्या कसूर रहा है यह सोचकर मन उदास आंखें नम रहती हैं
वह गलतफहमी में फजीहत किए जा रही है अपनी बेगुनाही का सबूत नहीं है बस तकलीफ में जिए जा रहा हूं सादगी से एकतरफा मोहब्बत किए जा रहा हूं
तुम्हें हकीकत से रूबरू कराने का उपाय ढूंढने लगा हूं रोज की फजीहत से निजात पाना चाहता हूं फिर अपने चेहरे पर मुस्कान चाहता हूं
मेरे खुशी का ध्यान रखने लगी है जबसे सच्चाई से रूबरू हो गई है बेतहाशा प्यार करने लगी है जो पहले फजीहत किया था उसके लिए हर बात में माफी मांगने लगी है
मन की ख्वाहिशों में, तुम्हारे फजीहत का रोष है तनहाई में दिन गुजर रहा है जो कृत्य कर रही हो खो गया सब होश है
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